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कविता

नए शहर में बरगद

केदारनाथ सिंह


जैसे मुझे जानता हो बरसों से
देखो, उस दढ़ियल बरगद को देखो
मुझे देखा
तो कैसे लपका चला आ रहा है
मेरी तरफ

पर अफसोस
कि चाय के लिए
मैं उसे घर नहीं ले जा सकता

 


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