जैसे मुझे जानता हो बरसों से देखो, उस दढ़ियल बरगद को देखो मुझे देखा तो कैसे लपका चला आ रहा है मेरी तरफ पर अफसोस कि चाय के लिए मैं उसे घर नहीं ले जा सकता
हिंदी समय में केदारनाथ सिंह की रचनाएँ